अभी तक हमारे देश में अंग्रेजी में ही चिकित्सा की पढ़ाई की जाती थी
यानी जो छात्र एमबीबीएस करके डॉक्टर बनने का सपना देखते थे उन्हें अपनी चिकित्सा की पढ़ाई यानी मेडिकल स्टडी को अंग्रेजी में ही करना होता था
ऐसे में जो छात्र हिंदी माध्यम से पढ़े हैं उन्हें अंग्रेजी समझने में थोड़ा दिक्कत होती थी और उनका डॉक्टर बनने का सपना भी अधूरा रह जाता था
ऐसे ही वे छात्र जो हिंदी माध्यम से पड़े हुए थे वह अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाते थे
आज नई चिकित्सा नीति के अंतर्गत हमारे देश भारत में पेशेवर शिक्षा जैसे मेडिकल स्टडी को भी हिंदी माध्यम में देने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया है और यह कोई छोटा कदम नहीं बल्कि काफी बड़ा कदम है क्योंकि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था
अब तक मेडिकल स्टडी यानी चिकित्सा की पढ़ाई सिर्फ अंग्रेजी में ही होती थी
साथ ही साथ बाजार में मिलने वाली मेडिकल स्टडी की सारी किताबें अंग्रेजी में ही मिलती थी लेकिन आज नई चिकित्सा नीति के तहत मेडिकल स्टडी की पढ़ाई के लिए तीन विषयों की तीन किताबों का हिंदी में अनावरण किया गया है और हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई होना बहुत ही सुखद है
साथ ही साथ इससे उन छात्रों को लाभ मिलेगा जिन्हें अंग्रेजी समझने में दिक्कत होती है और वह अंग्रेजी में कमजोर है ऐसे में वह छात्र भी अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं यह एक बड़ा ऐतिहासिक कदम है जिसके लिए हम काफी समय से प्रतीक्षा भी कर रहे थे
भारत सरकार के वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना के अंतर्गत चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे एमबीबीएस छात्रों के लिए हिंदी की पुस्तकों का अनावरण किया है
यह हमारे देश में पहला ऐतिहासिक कदम है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के एक भाग के रूप में तीन विषयों जिसमें शरीर रचना विज्ञान, जैव रसायन और चिकित्सा शरीर क्रिया विज्ञान की हिंदी पुस्तकों का अनावरण किया गया है।
साथ ही साथ उन्होंने यह भी कह दिया और घोषणा कर दी जल्द ही इंजीनियरिंग, कानून की पढ़ाई और पॉलिटेक्निक की पढ़ाई भी हिंदी में शुरू कर दी जाएगी।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़ी बात यह है की हिंदी में पढ़ाई किसी हिंदी भाषी राज्य में ही शुरू की जानी चाहिए थी और हिंदी भाषी राज्यों में भारत के राज्य मध्यप्रदेश ने इसमें शुरुआत करके बाजी मार ली।
वैसे इस विषय में काफी बार चर्चाएं हो चुकी है कि हमारी मातृभाषा में ही हमें शिक्षा मिलनी चाहिए और जब देश आजाद हुआ था और भारत का संविधान बनाया गया था तो भी यही सपना देखा गया था कि हमारे आधिकारिक काम व शिक्षा हमारी मातृभाषा में हो लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अंग्रेजी को महत्वपूर्ण समझा गया और हिंदी माध्यम की शिक्षा कम होती गई और ज्यादा से ज्यादा अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा शुरू हो गई और साथ ही स्कूल भी अंग्रेजी माध्यम में ही चलने लगे यदि कोई छात्र हिंदी माध्यम में पढ़ता तो उसे समझा जाता कि उसने अच्छी शिक्षा नहीं ली है और हिंदी माध्यम में पढ़ने वालों के प्रति लोगों का नजरिया भी थोड़ा अलग रहता है।
जो छात्र अंग्रेजी माध्यम में पढ़ते हैं उनको काफी मॉडर्न और शिक्षित समझा जाता है।
यह मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि आज के समाज की सोच ऐसी हो चुकी है अंग्रेजी माध्यम को ही ज्यादा महत्वपूर्ण समझते है।
जबकि अपनी मातृभाषा मैं बात करने में भी लोगों को अजीब लगता है लेकिन जिस प्रकार से हमारे देश ने हिंदी माध्यम में चिकित्सा की पढ़ाई शुरू करके एक कदम उठाया है इससे काफी ज्यादा फायदा होने की भी उम्मीद है।
हालांकि हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने का एक नुकसान यह भी हो सकता है कि जब हमारे देश के छात्र विदेशों में नौकरी करने जाएंगे तो उन्हें वहां पर नौकरी मिलने की उम्मीद कम है क्योंकि उन्हें अधिकतर जानकारी हिंदी में ही होगी और विदेशों में चिकित्सा की पढ़ाई ज्यादातर अंग्रेजी में ही होती है और वहां पर काम भी ज्यादतर अंग्रेजी में ही होते हैं इसलिए हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र विदेशों में काम करने में कुशल नहीं हो पाएंगे लेकिन इतना जरूर है कि अपने देश में उन्हें अच्छी पकड़ मिल सकती है।
इससे लोगों के साथ भी अच्छा तालमेल होने की उम्मीद है।
अगर हमारे देश भारत में वेतन भत्तों को सही कर लिया जाए और कार्य के लिए अच्छा वेतन दिया जाए तो बहुत सारे युवा ज्यादा पैसों की चाह में अन्य देशों में नहीं जाएंगे और वह अपने देश में ही काम करेंगे क्योंकि एक बड़ा कारण यह भी है कि हमारे देश भारत में जिस प्रकार की शिक्षा युवा हासिल करते हैं उस प्रकार से उन्हें उनकी शिक्षा के अनुसार वेतन नहीं मिलता और जो वेतन मिलता है वो उनकी उम्मीद से बहुत ही कम होता है इसलिए युवा विदेशों में नौकरी करने चले जाते हैं जहां उन्हें अच्छा वेतन भी मिलता है और काम का सम्मान भी।
यदि हमारे देश भारत में इसमें सुधार कर लिया जाए तो हमारे देश की युवा बाहर विदेशों में ना जा कर अपने ही देश में सेवा देंगे और इससे हमारे देश का ही फायदा होगा।
वर्तमान और अतीत मे महत्वपूर्ण शिक्षा को और पेशेवर शिक्षा को हम हिंदी मे देने के मामले में बहुत पीछे रह गए हैं लेकिन इसमें गलती भी हमारी ही है क्योंकि हमने उसे स्वयं अहमियत नहीं थी लेकिन अब जो ऐतिहासिक कदम लिया गया है उससे एक मौका मिला है कि हम हिंदी में अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाकर उसे एक महत्वपूर्ण स्थान पर ले जा सकते हैं।
हमारा देश भारत सिर्फ एक भाषा का देश नहीं है यहां पर अनेक भाषाएं बोली जाती है और यहां पर काफी राज्य ऐसे हैं जहां पर ज्यादा हिंदी नहीं बोली जाती इसलिए हिंदी को ऐसे राज्यों के ऊपर भी नहीं थोपा सकता यानी कि हम सब के ऊपर हिंदी नहीं थोप सकते और यह हमारे देश के लिए अच्छा भी नहीं है क्योंकि जिन्हें हिंदी आती ही नहीं है अगर हम उन्हें जबरदस्ती हिंदी में पढ़ने के लिए मजबूर करें तो यह तानाशाही जैसा ही होगा और यह सफल भी नहीं हो पाएगा।
जैसे हमने हिंदी में पढ़ाई शुरू करी है वैसे ही हमें हमारे देश भारत में राज्यों के अनुसार उनकी भाषा में ही पढ़ने का मौका देना चाहिए जिससे उन्हें अच्छी शिक्षा भी मिलेगी और उन्हें पढ़ने में भी आसानी होगी।
आने वाले समय में इसमें हमें अधिक सुधार की उम्मीद है कि सभी को उनकी भाषा में पढ़ने का मौका मिलेगा जिससे उन्हें समझने में भी आसानी होगी।